Kalank Mukti

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Rajkamal Prakashan, Jan 1, 2009 - 112 pages
NA
 

Contents

Section 1
5
Section 2
30
Section 3
100
Section 4
108
Section 5
110
Section 6
112
Copyright

Common terms and phrases

अपनी अपने अब अभी आज आनन्द को आप आपके आयी इस उस उसकी उसके उसने एक ओर और कमरे कर करती करने कह कहा कहाँ का काम कि किन्तु किया किसी की कुछ कुन्ती देवी के पास के बाद के लिए को कोई कौन क्या क्यों गया है गयी घर घोष जब जायेगा जी जो ठीक तक तब तरह तुम तुम्हारे तो था थी दिन दी दीदीजी देखा दो नहीं नाम ने कहा नेपाल पर पहले पूछा फिर बड़ी मेम बहुत बागे बात बार बिहार बेला गुप्त बेला गुप्त ने बोली भाई भी मत मिस मिस्टर मुझे में में ही मेम साहब मेरे मैं मैंने यह यहाँ या रमला रमा रहती रहा रही है राजगीर रानीबाला रामरति लगी लड़की ले लेकर लेकिन लोग लोगों वह विभावती श्रीमती आनन्द श्रीमती आनन्द ने सब सभी समय साथ से हम हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ हैं हो गयी होगा होस्टल

About the author (2009)

हिन्दी कथा-साहित्य को सांगीतिक भाषा से समृद्ध करनेवाले फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना गाँव में 4 मार्च, 1921 को हुआ। लेखन और जीवन, दोनों में दमन और शोषण के विरुद्ध आजीवन संघर्ष के प्रतिबद्ध रेणु ने राजनीति में भी सक्रिय हिस्सेदारी की। 1942 के भारतीय स्वाधीनता-संग्राम में एक प्रमुख सेनानी की हैसियत से शामिल रहे। 1950 में नेपाली जनता को राणाशाही के दमन और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए वहाँ की सशस्त्र क्रान्ति और राजनीति में सक्रिय योगदान। 1952-53 में दीर्घकालीन रोगग्रस्तता के बाद राजनीति की अपेक्षा साहित्य-सृजन की ओर अधिकाधिक झुकाव। 1954 में बहुचर्चित उपन्यास मैला आँचल का प्रकाशन। कथा-साहित्य के अतिरिक्त संस्मरण, रेखाचित्र और रिपोर्ताज़ आदि विधाओं में भी लिखा। व्यक्ति और कृतिकार, दोनों ही रूपों में अप्रतिम। जीवन की सांध्य वेला में राजनीतिक आन्दोलन से पुनः गहरा जुड़ाव। जे.पी. के साथ पुलिस दमन के शिकार हुए और जेल गए। सत्ता के दमनचक्र के विरोध में पद्मश्री लौटा दी। मैला आँचल के अतिरिक्त आपके प्रमुख उपन्यास हैं: परती परिकथा और दीर्घतपा; ठुमरी, अगिनखोर, आदिम रात्रि की महक, एक श्रावणी दोपहरी की धूप तथा सम्पूर्ण कहानियाँ में कहानियाँ संकलित हैं। संस्मरणात्मक पुस्तकें हैं: ऋणजल धनजल, वन तुलसी की गन्ध, श्रुत-अश्रुत पूर्व। नेपाली क्रान्ति-कथा चर्चित रिपोर्ताज है।, भारत यायावर द्वारा सम्पादित रेणु रचनावली में फणीश्वरनाथ रेणु का सम्पूर्ण रचना-कर्म पाँच खंडों में प्रस्तुत किया गया है। 11 अप्रैल, 1977 को देहावसान।

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