EK THAA ISHWAR एक था ईश्वर: New Satires-2/ नये व्यंग्य-2नास्तिकता का अपना यह सफ़र बहुत दिलचस्प रहा।सामुदायिक ब्लॉग ‘नास्तिकों का ब्लॉग’ पर पहली पोस्ट लिखी-‘नास्तिकता सहज है’। http://nastikonblog.blogspot. अच्छी बहस चली। दो-एक पोस्ट और लिखीं। आखि़री पोस्ट पर ज़बरदस्त बहस छिड़ गई, इतनी कि प्रतिपक्ष के लोग मेरे पीछे-पीछे फ़ेसबुक पर चले आए और बताने लगे कि नास्तिक होने या बने रहने के क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं। उसी दिन मैंने फ़ेसबुक पर ‘नास्तिकThe Atheist’ नाम से ग्रुप बना दिया। इसमें बारह-तेरह लोग थे जिनमें से संभवतः कुछ वामपंथी और कुछ बसपाई मित्र थे। एक नया काम यह किया कि दूसरों की तरह हमने अपनी तरफ़ से किसीको ‘ऐड’ नहीं किया बल्कि जो लोग ख़ुद रिक्वेस्ट करते थे उन्हीं मे से कुछ को/सबको ले लेते एक काम यह किया कि हमने अपनी पोस्टों/विचारों या तर्कों को आस्तिकता के उन्हीं तर्कों तक सीमित रखा जो हमारे आस्तिक मित्र रोज़मर्रा के जीवन में इस्तेमाल करते हैं। अणु-परमाणु की बहसों की हमने तथाकथित ईश्वर के संदर्भ में क़तई परवाह नहीं की। छोटी से छोटी बात पर तर्क रखे, बहस की। नये से नये तर्क जो पहले कभी रखे नहीं गए थे। साल-भर के अंदर ग्रुप के बाहर भी नास्तिकता पर काफ़ी स्टेटस दिखाई देने लगे। सबसे मज़ेदार बात यह हुई कि जो लोग नास्तिकता का नाम भी लेने में हिचकिचाते थे, वे ख़ुदको असली नास्तिक और हमें नक़ली नास्तिक बताने लगे। मिलते-जुलते नामों से ग्रुप खुलने लगे। ख़ुद मैंने भी एक ब्लॉग ‘नास्तिकThe Atheist’ नाम से बना डाला। http://nastiktheatheist. ग्रुप भी फ़ेसबुक पर चल ही रहा है और मैं ज़्यादा लफ़्फ़ाज़ी करके आपको बोर नहीं करना चाहता ; इस व्यंग्य-संग्रह को पढ़कर बाक़ी अंदाज़ा आप ख़ुद ही लगा लेंगे। अगर आप नास्तिक नहीं हैं तो इस संग्रह को इसलिए पढ़ सकते हैं कि पढ़कर हमारी धज्जियां उड़ा सकें, हमें शर्मिंदा कर सकें, हमें सोचने पर मजबूर कर सकें। -संजय ग्रोवर (10-07-2015) |
What people are saying - Write a review
Contents
4 | |
Section 2 | 19 |
Section 3 | 21 |
Section 4 | 24 |
Section 5 | 31 |
Section 6 | 32 |
Section 7 | 33 |
Section 8 | 33 |
Section 9 | 36 |
Section 10 | 36 |
Section 11 | 39 |
Section 12 | 42 |
Section 13 | 48 |