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अजीत अपनी अपने अब आज आया इस उनकी उनके उन्हें उन्होंने उस उसका उसकी उसके उसने उसे ऐसा और कई कभी कर करता करते करने कलकत्ता कहा का काम कि वह किया किसी की कुछ के बाद के लिए केवल को कोई क्या क्यों गंगा गई गए गयी गाँव घर चला जब जमीन जाता जी जीजी जो ठाकुर ढाबे तक तरह तुम तुम्हारे तो था कि थी थे दिनों दिया दिल्ली दी दे दो नहीं नाम ने ने कहा नौकरी पता पर परन्तु पहले पास पिताजी फिर बड़ी बहुत बात बाबू ने बार बाल गोविंद बाहर बिहार भी मन माँ मानो मुझे में मैं मैकू यदि यह यहाँ या याद रमा रमेश रहा था रही रहे रामपुर रुपये लगा कि लिया ले लेकिन लोग लोगों वह वहाँ विदेशिया वे सरिता साथ साहब से सोचा हरिहर बाबू को हरीश ही हुआ हुई हूँ है है कि हैं हो गया होगा