Shukraniti / Nachiket Prakashan: शुक्रनीतिNachiket Prakashan, Aug 22, 2014 - 48 pages अपनी बुद्धी के आधारपर जो दैत्य, असूर इनके गुरू बने । जिनके नीती का अभ्यास प्राचीन कालके सारे राजे महाराजे, मुत्सद्दी इन्होंने किया। ऐसे महान तत्त्वचित्तक तथा राजनयिक श्री शुक्राचार्य इनकी नीती का यह संग्रह आजभी उपयुक्त तथा अभ्यासनीय है । व्यवस्थापन के विद्यार्थी इसके ज्ञान चातुर्य इससे अनभिज्ञ नही रह सकते। |
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अत अधिक अपनी अपने अभिमानी अर्थात् इच्छा इन इस उचित है उस उसका उसके उसे एक कभी कर करता है करते करनी करने करने वाला कर्म का परित्याग काम कार्य किं किए किया किसी के की के कारण के बिना के लिए को को भी कोई क्या क्रोध जाने जिस जो तथा तु तो दान दुष्ट देता है देना चाहिए दोष धन का धर्म नही नहीं करना चाहिए नहीं होता नागपूर नाश नित्यं नैव पत्नी पर परन्तु पिता पुत्र पुरुष प्रकार प्रति प्राप्त बल बहुत बात भवेत् भाव मन मनुष्य माता मित्र मे में यदि यह या योग्य रखना राजा रूप वश वह वाले विचार विद्या विना विपरीत वैश्य व्यक्ति व्यवहार शुक्राचार्य सकता सदा सभी सहायता साथ सुख से भी स्त्री स्यात् स्वामी हि हितोपदेश ही हुआ हुए है और है कि हैं हो जाता है होता है होती होना चाहिए होने