Hindi Sahitya Ak ParichyaRajkamal Prakashan, Jan 1, 2005 - 111 pages आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, ‘प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब होता है, तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। आदि से अंत तक इन्हीं चित्तवृत्तियों की परम्परा को परखते हुए साहित्य-परम्परा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना साहित्य का इतिहास कहलाता है।’ आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का मत है कि ‘साहित्य का इतिहास ग्रंथों और ग्रंथकारों के उद्भव और विलय की कहानी नहीं है वह काल स्रोत में बहे आते हुए जीवन्त समाज की विकास कथा है।’ हिन्दी के इन दोनों मूर्धन्य विचारकों की परिभाषाओं से स्पष्ट है कि साहित्य जनता की चित्तवृत्तियों का संचित प्रतिबिम्ब है। चित्तवृत्तियाँ समय एवं काल के अनुसार परिवर्तित होती रहती हैं। अतएव साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता रहता है। इन परिस्थितियों के आलोक में साहित्य की इस विकासशील प्रवृत्ति को प्रस्तुत करना ही साहित्य का इतिहास कहलाता है। कहना न होगा कि साहित्य का विश्लेषण, अध्ययन केवल साहित्य एवं साहित्यकार तक सीमित रखकर नहीं किया जा सकता। साहित्य की विभिन्न प्रवृत्तियों की प्रस्तुति के लिए उससे सम्बन्धित राष्ट्रीय परम्पराओं, सामाजिक परिस्थितियों, आर्थिक परिस्थितियों, उस युग की चेतना, साहित्यकार की प्रतिभा तथा प्रवृत्ति का विश्लेषण आवश्यक है। देशकाल परिस्थिति भेद से समाज का स्वरूप परिवर्तित होता रहता है, साहित्य समाज का ही प्रतिबिम्ब होता है। स्पष्टतः समाज के स्वरूप के परिवर्तन का प्रभाव साहित्य पर पड़ता है। इस प्रकार साहित्य का इतिहास न केवल विकासशील प्रक्रिया का उद्घाटन करता है बल्कि इस क्रम में नए और पुराने संघर्ष को भी रेखांकित करता चलता है। इसके अतिरिक्त इसमें साहित्य एवं समाज को प्रभावित करने वाले विभिन्न आन्दोलनों, परिवर्तनों और प्रयोगों के सम्बन्ध का भी विवेचन होता है। साहित्य के इतिहास में रचना और रचनाकार की सृजनात्मक क्षमता को वर्तमान की कसौटी पर कसा जाता है। विश्वम्भर मानव के शब्दों में, ‘किसी भाषा में उस साहित्य का इतिहास लिखा जाना उस साहित्य की समृद्धि का परिणाम है। साहित्य के इतिहास को वह भित्तिचित्र समझिए जिसमें साहित्यिकों के आकृति-चित्र नहीं होते, हृदय-चित्र और मस्तिष्क-चित्र ही होेते हैं।’ - इसी पुस्तक से |
Contents
Section 1 | 5 |
Section 2 | 7 |
Section 3 | 9 |
Section 4 | 10 |
Section 5 | 11 |
Section 6 | 13 |
Section 7 | 21 |
Section 8 | 39 |
Section 9 | 75 |
Section 10 | 89 |
Section 11 | 98 |
Common terms and phrases
अधिक अनेक अन्य अपनी अपने अपभ्रंश आचार्य आचार्य रामचंद्र शुक्ल आदि आदिकाल इतिहास इन इनका इनकी इनके इन्होंने इस इसके इसमें इसी उनका उनकी उनके उपन्यास एक एवं और कबीर कर करते करने कवि कविता कवियों कहा कहानी का काल काव्य किंतु किया है की कुछ कृष्ण के के कारण के रूप में के लिए के साथ को गई गए गया है ग्रंथ चित्रण जन्म जा जाता है जीवन जो डॉ तक तथा तुलसीदास तो था थी थे दिया दृष्टि से दो दोनों द्वारा नहीं नाटक नाम ने पं पद पर प्रकार प्रमुख प्रसाद प्रसिद्ध प्रेम प्रेमचंद बहुत भक्ति भारत भाषा में भी महत्त्वपूर्ण माना मिश्र में में भी यह युग ये रस राम रामचरितमानस लिखा लिखे वर्णन वह वाले विकास विद्यापति विशेष वे शृंगार शैली श्री सं संबंध संवत् संस्कृत समय साहित्य के सुंदर सूरदास से हिंदी साहित्य ही हुई हुए है कि हैं हो होता है होने