Tirohit

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Rajkamal Prakashan, Sep 1, 2007 - Fiction - 171 pages
गीतांजलि श्री के लेखन में अमूमन, और तिरोहित में ख़ास तौर से, सब कुछ ऐसे अप्रकट ढंग से घटता है कि पाठक ठहर–से जाते हैं । जो कुछ मारके का है, जीवन को बदल देने वाला है, उपन्यास के फ्रेम के बाहर होता है । जि“न्दगियाँ चलती–बदलती हैं, नए–नए राग–द्वेष उभरते हैं, प्रतिदान और प्रतिशोध होते हैं, पर चुपके–चुपके । व्यक्त से अधिक मुखर होता है अनकहा । घटनाक्रम के बजाय केन्द्र में रहती हैं चरित्र–चित्रण व पात्रों के आपसी रिश्तों की बारीकियाँ । पैनी तराशी हुई गद्य शैली, विलक्षण बिम्बसृष्टि और दो चरित्रोंµललना और भतीजाµके परस्पर टकराते स्मृति प्रवाह के सहारे उद्घाटित होते हैं तिरोहित के पात्र % उनकी मनोगत इच्छाएँ, वासनाएँ व जीवन से किए गए किन्तु रीते रह गए उनके दावे । अन्दर–बाहर की अदला–बदली को चरितार्थ करती यहाँ तिरती रहती है एक रहस्यमयी छत । मुहल्ले के तमाम घरों को जोड़ती यह विशाल खुली सार्वजनिक जगह बार–बार भर जाती है चच्चो और ललना के अन्तर्मन के घेरों से । इसी से बनता है कथानक का रूप । जो हमें दिखाता है चच्चो/बहनजी और ललना की इच्छाओं और उनके जीवन की परिस्थितियों के बीच की न पट सकने वाली दूरी । वैसी ही दूरी रहती है इन स्त्रियों के स्वयं भोगे यथार्थ और समाज द्वारा देखी गई उनकी असलियत में । निरन्तर तिरोहित होती रहती हैं वे समाज के देखे जाने में । किन्तु चच्चो/बहनजी और ललना अपने अन्तर्द्वन्द्वों और संघर्षों का सामना भी करती हैं । उस अपार सीधे–सच्चे साहस से जो सामान्य जि“न्दगियों का स्वभाव बन जाता है । गीतांजलि श्री ने इन स्त्रियों के घरेलू जीवन की अनुभूतियोंµ रोज“मर्रा के स्वाद, स्पर्श, महक, दृश्यµको बड़ी बारीकी से उनकी पूरी सैन्सुअलिटी में उकेरा है । मौत के तले चलते यादों के सिलसिले में छाया रहता है निविड़ दु%ख । अतीत चूँकि बीतता नहीं, यादों के सहारे अपने जीवन का अर्थ पाने वाले तिरोहित के चरित्रµललना और भतीजाµअविभाज्य हो जाते हैं दिवंगत चच्चो से । और चच्चो स्वयं रूप लेती हैं इन्हीं यादों में ।
 

Selected pages

Contents

Section 1
4
Section 2
6
Section 3
7
Section 4
8
Section 5
9
Section 6
11
Section 7
14
Section 8
17
Section 17
195
Section 18
197
Section 19
199
Section 20
238
Section 21
252
Section 22
297
Section 23
316
Section 24
373

Section 9
23
Section 10
27
Section 11
44
Section 12
82
Section 13
110
Section 14
130
Section 15
147
Section 16
184
Section 25
479
Section 26
483
Section 27
506
Section 28
513
Section 29
517
Section 30
524
Section 31
547
Section 32
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Common terms and phrases

अपनी अपने अब अर्थ अर्थात् आदि इन इस इस प्रकार इसी इसीलिए उनका उनकी उनके उन्हें उन्होंने उस उसका उसके उसी उसे ऊपर एक ऐसा ओर कबीर कबीरदास कर करके करता करते करने कवि कहते हैं कहा का कारण किया है किसी की कुछ कृष्ण के लिए के साथ केवल को कोई क्या गया है गयी गये जब जहाँ जाता है जिस जो ज्ञान तक तब तुलसीदास तो था थी थे दिया दो दोनों धर्म नहीं है नाम निरंजन ने पद पर परन्तु पृ प्रेम फिर बहुत बात बाद भक्त भक्ति भगवान् भाव भी भी नहीं मत मन में में ही मैं यह या युग ये रस रहा रहे राधा राम रामचरितमानस रूप में रे लोग वह वही वे वेद वैष्णव शब्द शिव श्रीकृष्ण संसार सकता है सब समय सहज साधना साहित्य सूरदास से सो हम हिन्दू ही हुआ हुई हुए है और है कि हो होता है होती

About the author (2007)

गीतांजलि श्री के चार उपन्यास – माई, हमारा शहर उस बरस, तिरोहित, खाली जगह – और पाँच कहानी संग्रह– अनुगूँज, वैराग्य, मार्च माँ और साकुरा, प्रतिनिधि कहानियाँ, यहाँ हाथी रहते थे छप चुके हैं। इनकी रचनाओं के अनुवाद अंग्रेज़ी, फ्रेंच, जर्मन, जापानी, सर्बियन, बांग्ला, गुजराती, उर्दू इत्यादि में हुए हैं। इनका एक शोध-ग्रंथ – बिट्वीन टू वर्ल्ड्स : एन इंटलैक्चुअल बिऑग्रैफ़ी ऑव प्रेमचन्द भी – प्रकाशित हुआ है। इनको इन्दु शर्मा कथा सम्मान, हिन्दी अकादमी साहित्यकार सम्मान और द्विजदेव सम्मान के अलावा जापान फाउंडेशन, चार्ल्स वॉलेस ट्रस्ट, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और नॉन्त स्थित उच्च अध्ययन संस्थान की फ़ैलोशिप मिली हैं। ये स्कॉटलैंड, स्विट्ज़रलैंड और फ्रांस में राइटर इन रैजि़डैंस भी रही हैं। गीतांजलि थियेटर के लिए भी लिखती हैं और इनके द्वारा किए गए रूपांतरणों का मंचन देश-विदेश में हुआ है। सम्पर्क : वाई ए-3, सहविकास, 68 आई पी विस्तार, दिल्ली-110 092

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