Rachna Ki Zameenहर समय की अपनी आवाज़ होती है। कुछ अपने बोल होते हैं, अपने-अपने शब्द, अपने मुहावरे होते हैं और होती है अपनी भाषा जिससे संवाद किये बगैर उस समय की धड़कन यानी बच्चे के लिए कोई किताब नहीं लिखी जा सकती। यही किसी भी नयी रचना या नयी पुस्तक की ज़मीन बन सकती है। * कविता अपनी बुनावट में खुलती जा रही थी। पूरी कक्षा इस अन्त से चकित थी। उनके सामने जैसे एक भयावह रहस्य खुल रहा था या कवि के शब्दों में भेद खुल रहा था, कि बुद्धि की कंगाली की अन्तिम परिणति क्या है? * मेरे सामने उद्धव की गोपियों की तरह कई किताबें खुल पड़ी हैं। कह रही हैं-'हमका लिख्यो है कहा, हमका लिख्यो है कहा' । देखिए तो, जिन किताबों में मैंने काम किया वे सब की सब अपनी-अपनी कहानी सुनाने को उतावली हो गयीं। * मुझे लगा मैं किताब नहीं ख़ुद को पढ़ रही हूँ। किताब के पन्नों को उलटते-पलटते कई बार कई तरीक़े से पढ़ा। कभी बीच से, कभी अन्त से, तो कभी शुरू से, हर बार एक नये अर्थ के साथ। इस किताब के पन्नों के भीतर से कई बार मैंने कई सदी की स्त्रियों, तो कभी मेरे घर की रसोई में खड़ी स्त्री की धड़कन महसूस की। (इसी किताब से...) |
Contents
Section 1 | 7 |
Section 2 | 9 |
Section 3 | 13 |
Section 4 | 16 |
Section 5 | 19 |
Section 6 | 24 |
Section 7 | 26 |
Section 8 | 28 |
Section 19 | 56 |
Section 20 | 63 |
Section 21 | 68 |
Section 22 | 72 |
Section 23 | 78 |
Section 24 | 87 |
Section 25 | 91 |
Section 26 | 94 |
Section 9 | 30 |
Section 10 | 32 |
Section 11 | 34 |
Section 12 | 36 |
Section 13 | 39 |
Section 14 | 44 |
Section 15 | 46 |
Section 16 | 48 |
Section 17 | 51 |
Section 18 | 53 |
Section 27 | 97 |
Section 28 | 103 |
Section 29 | 108 |
Section 30 | 112 |
Section 31 | 116 |
Section 32 | 118 |
Section 33 | 121 |
Section 34 | 127 |
Section 35 | 133 |
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Common terms and phrases
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