Hindu SabhyataRajkamal Prakashan, Sep 1, 2007 - 336 pages हिन्दू सभ्यता प्रख्यात इतिहासकार प्रो. राधाकुमुद मुखर्जी की सर्वमान्य अंग्रेजी पुस्तक हिंदू सविलिजेशन का अनुवाद है। अनुवाद किया है इतिहास और पुरातत्व के सुप्रतिष्ठ विद्वान डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने। इसलिए अनूदित रूप में भी यह कृति अपने विषय की अत्यंत प्रामाणिक पुस्तकों में सर्वोपरि है। हिंदू सभ्यता के आदि स्वरूप के बारे में प्रो. मुखर्जी का यह शोधाध्ययन ऐतिहासिक तिथिक्रम से परे प्रागैतिहासिक, ऋग्वैदिक, उत्तरवैदिक और वेदोत्तर काल से लेकर इतिहास के सुनिश्चित तिथिक्रम के पहले दो सौ पचहत्तर वर्षों (ई. पू. 650-325) पर केन्द्रित है। इसके लिए उन्होंने ऋग्वेदीय भारतीय मानव के उपलब्ध भौतिक अवशेषों तथा उसके द्वारा प्रयुक्त विभिन्न प्रकार की उत्खनित सामग्री का सप्रमाण उपयोग किया है। वस्तुतः प्राचीन सभ्यता या इतिहास-विषयक प्रामाणिक लेखन उपलब्ध अलिखित साक्ष्यों के बिना संभव ही नहीं है। यह मानते हुए भी कि भारत में साहित्य की रचना लिपि से पहले हुई और वह दीर्घकाल तक कंठ- परंपरा में जीवित रहकर ‘श्रुति’ कहलाया जाता रहा, उसे भारतीय इतिहास की प्राचीनतम साक्ष्य-सामग्री नहीं माना जा सकता। यों भी यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि लिपि, लेखन-कला, शिक्षा या साहित्य मानव-जीवन में तभी आ पाए, जबकि सभ्यता ने अनेक शताब्दियों की यात्रा तय कर ली। इसलिए प्रागैतिहासिक युग के औजारों, हथियारों, बर्तनों और आवासगृहों तथा वैदिक और उत्तरवैदिक युग के वास्तु, शिल्प, चित्र, शिलालेख, ताम्रपट्ट और सिक्कों आदि वस्तुओं को ही अकाट्य ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाता है। कहना न होगा कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता के क्षेत्र में अध्ययनरत शोध छात्रों के लिए अत्यंत उपयोगी इस कृति के निष्कर्ष इन्हीं साक्ष्यों पर आधारित हैं। |
Contents
Section 1 | 9 |
Section 2 | 10 |
Section 3 | 11 |
Section 4 | 12 |
Section 5 | 13 |
Section 6 | 14 |
Section 7 | 17 |
Section 8 | 24 |
Section 11 | 79 |
Section 12 | 85 |
Section 13 | 103 |
Section 14 | 104 |
Section 15 | 131 |
Section 16 | 135 |
Section 17 | 184 |
Section 18 | 188 |
Section 9 | 58 |
Section 10 | 59 |
Section 19 | 307 |
Section 20 | 313 |
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Common terms and phrases
अजातशत्रु अथवा अधिक अन्य अपनी अपने अर्थात् आदि इतिहास इन इस इस प्रकार उनका उनकी उनके उन्होंने उल्लेख है उस उसका उसकी उसके उसे ऊपर ऋग्वेद एक एवं और कर करना करने कहा गया है का का उल्लेख कारण किंतु किया किसी की की ओर कुछ के अनुसार के रूप में के लिए के साथ को गई गए ग्रंथों जहाँ जा जाता था जाती जाते जिसके जिसमें जीवन जैसा जैसे जो तक तो था थी थीं थे दिया देश दो दोनों द्वारा धर्म नगर नहीं नाम ने पर पहले पुत्र पुराण पू पूर्व प्राचीन प्राप्त बहुत बाद बीच बुद्ध बुद्ध के बौद्ध बौधायन ब्राह्मण भाग भारत भारतीय भी महाभारत में यह या याज्ञवल्क्य ये राजा राज्य लोग वर्ष वह वही वाले विदेह वे वैदिक शाक्य शूद्र संघ संबंध सभा सभ्यता समय सिंधु सिकंदर से स्थान ही हुआ हुई हुए है और है कि हैं हो होता है होती