Arjun Singh : Ek Sahayatri Itihaas Ka: Ek Sahayatri Itihaas Ka

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Rajkamal Prakashan, Jan 1, 2009 - India - 479 pages
जीवनी : चुरहट से दिल्ली तक देश के किसी विख्यात व जीवित राजनेता की जीवनी लिखना जोखिमभरा काम है । जब जीवनी का नायक अर्जुन सिंह जैसा राष्ट्रीय नेता रहे तब खंडन-मंडन की सम्भावना सतत् रहेगी । केन्द्र व मध्यप्रदेश के विभिन्न मंत्री पदों और पंजाब के राज्यपाल पद पर रहने वाले सिंह नेहरू-इन्दिरा काल के उन चन्द नेताओं में से एक हैं जिनकी धर्मनिरपेक्षता, बहुलतावाद और समाजवाद में अभेद्य आस्था रही है । वैश्वीकरण व एकलध्रुवीय व्यवस्था के दबावों के बावजूद सिंह ने राष्ट्रीय सम्प्रभुता को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा । उन्होंने अपनी प्रतिबद्धताओं की राजनीतिक कीमत भी चुकाई । वे विवादों और उपेक्षाओं के भी शिकार हुए लेकिन अपने संकल्प-पथ से डिगे नहीं । सिंह अपनी विफलताओं व उपलब्धियों के साथ आज भी इस पथ पर डटे हुए हैं । यह जीवनी चुरहट से दिल्ली तक की यात्रा तय करनेवाले पथिक अर्जुन सिंह के राजनीतिक बसन्त व पतझड़ की यथार्थपरक कहानी है । समाजवाद ''.. .इतना मैं अवश्य कहना चाहता हूं कि विश्व इतिहास के मूक पृष्ठ इस बात के साक्षी हैं कि जब कभी भी किसी देश के नेताओं ने उन मूलभूत सिद्धांतों की अवहेलना की, जिनसे कि मानव समाज की ऐतिहासिक शृंखला बंधी है, तभी उस देश में भीषण क्रांति का प्रादुर्भाव हुआ है । यह कहते हुए मुझे इस बात की चिंता नहीं है कि इस देश में भी एक ऐसी क्रांति होगी जो कि इन प्रतिक्रियावादी सिद्धांतों और मनुष्यों को अपने झोंके में बहा ले जाएगी, चिंता तो मुझे केवल इस बात की है कि भारतीय प्रजातंत्र के शैशवकाल में हम उन परंपराओं और सिद्धांतों को सुदृढ़ नहीं कर पा रहे हैं जिनकी आधारशीला पर एक प्रभावशाली और उन्नत राष्ट्र का निर्माण हो सके । समाजवाद का मूल आधार है-सामाजिक नैतिकता । और सामाजिक नैतिकता व्यक्तिगत नैतिकता की प्रतिबिंब है, लेकिन जिस समाज के नेताओं में व्यक्तिगत नैतिकता का अभाव हो उनके द्वारा समाजवाद जैसे उच्च नैतिक सिद्धांत की पुष्टि कहां तक हो सकती है; यह एक विचारणीय प्रश्न है.. .'' मप्र. विधानसभा, 5 दिसंबर, 1957) और नक्सलवाद ''. ..चारों ओर एक अशांति का वातावरण पैदा हो रहा है और विशेषकर आदिवासी अंचलों में यह वातावरण बहुत तेजी से बढ़ रहा है । नक्सलवादियों का आतंक यहां बढ़ रहा है । यह कोई संयोग मात्र नहीं है । यह उस सामाजिक बेचैनी और सामाजिक परिवर्तन का लक्षण है जो वहां के लोग चाहते हैं । यह हमारा और आपका कर्तव्य है कि हम उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप अपनी नीतियों, कार्यक्रमों और अपने निर्णय को ढालें ताकि जो असंतोष है, शोषण तथा आतंकवाद के खिलाफ विद्रोह का जो वातावरण है, अगर एक सामाजिक आवरण के अंदर इनका समाधान खोजने की कोशिश नहीं की गई, और हम केवल शांति व व्यवस्था के प्रश्न के रूप में समाधान करने की कोशिश करेंगे तो इससे बढ्कर कोई दूसरी गलती नहीं हो सकती.. .'' मप्र. विधानसभा, 5 जुलाई, १९९० -अर्जुन सिंह
 

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Contents

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Section 14
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Section 28
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Section 30
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Section 31
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Section 32
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Section 33
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Section 34
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Section 35
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Section 36
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Common terms and phrases

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About the author (2009)

रामशरण जोशी मार्च, 1944 में अलवर (राजस्थान) में जन्मे रामशरण जोशी पेशे से पत्रकार, सम्पादक, समाजविज्ञानी और मीडिया के अध्यापक रहे हैं। भारतीय जनसंचार संस्थान में विजिटिंग प्रोफेसर। 1999 से 2004 तक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में पूर्णकालिक प्रोफेसर और कार्यपालक निदेशक के पद पर कार्यरत रहे। आप राष्ट्रीय बाल भवन के अध्यक्ष और केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष भी रहे हैं। महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा में विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं। आपकी प्रमुख कृतियाँ हैं—'आदमी, बैल और सपने', 'आदिवासी समाज और विमर्श', '21वीं सदी के संकट', 'मीडिया विमर्श' आदि। आपको बिहार सरकार द्वारा 'राजेन्द्र माथुर राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार', मध्य प्रदेश सरकार का 'राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान', हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा 'पत्रकारिता सम्मान', 'गणेश शंकर विद्यार्थी साम्प्रदायिक सौहार्द पुरस्कार' से सम्मानित किया जा चुका है। आप फिलहाल नई दिल्ली में परिवार के साथ रहते हुए स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। joshisharan1@gmail.com

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