Shudron Ka Pracheen ItihasRajkamal Prakashan, Jan 1, 2009 - 338 pages शूद्रों का प्राचीन इतिहास प्रख्यात इतिहासकार प्रो– रामशरण शर्मा की अत्यंत मूल्यवान कृति है । शूद्रों की स्थिति को लेकर इससे पूर्व जो कार्य हुआ है, उसमें तटस्थ और तलस्पर्शी दृष्टि का प्राय% अभाव दिखाई देता है । ऐसे कार्य में कहीं ‘शूद्र’ शब्द के दार्शनिक आधार की व्याख्या–भर मिलती है, तो कहीं धर्मसूत्रों में शूद्रों के स्थान कीय कहीं शूद्रों के गुलाम नहीं होने को सिद्ध किया गया है, तो कहीं उनके उच्चवर्गीय होने को । कुछ अध्ययनों में प्राचीन भारत के श्रमशील वर्ग से संबद्ध सूचनाओं का संकलन–भर हुआ है । दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे अध्ययनों में विभिन्न परिस्थितियों में पैदा हुई उन पेचीदगियों की प्राय% उपेक्षा कर दी गई है, जिनके चलते शूद्र नामक श्रमजीवी वर्ग का निर्माण हुआ । कहना न होगा कि यह कृति उक्त तमाम एकांगिताओं अथवा प्राचीन भारतीय जीवन के पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने की प्रकृति से मुक्त है । लेखक के शब्दों में कहें तो ‘‘प्रस्तुत गं्रथ की रचना का उद्देश्य प्राचीन भारत में शूद्रों की स्थिति का विस्तृत विवेचन करना मात्र नहीं, बल्कि उसके ऐसे आधुनिक विवरणों का मूल्यांकन करना भी है जो या तो अपर्याप्त आँकड़ों के आधार पर अथवा सुधारवादी या सुधारविरोधी भावनाओं से प्रेरित होकर लिखे गए हैं ।’’ संक्षेप में, प्रो– शर्मा की यह कृति ऋग्वैदिक काल से लेकर करीब 500 ई– तक हुए शूद्रों के विकास को सुसंबद्ध तरीके से सामने रखती है । शूद्र चूँकि श्रमिक वर्ग के थे, अत% यहाँ उनकी आर्थिक स्थिति और उच्च वर्ग के साथ उनके समाजार्थिक रिश्तों के स्वरूप की पड़ताल के साथ–साथ दासों और अछूतों की उत्पत्ति एवं स्थिति की भी विस्तार से चर्चा की गई है । |
Contents
Section 1 | 7 |
Section 2 | 9 |
Section 3 | 16 |
Section 4 | 49 |
Section 5 | 68 |
Section 6 | 88 |
Section 7 | 146 |
Section 8 | 176 |
Section 10 | 220 |
Section 11 | 252 |
Section 12 | 278 |
Section 13 | 305 |
Section 14 | 307 |
Section 15 | 309 |
Section 16 | 312 |
Section 17 | 313 |
Section 9 | 219 |
Section 18 | 315 |
Common terms and phrases
अथर्ववेद अन्य अपने अर्थ अर्थशास्त्र आर्य इंडिया इन इस इससे उच्च उनके उन्हें उन्होंने उस उसके उसे ऋग्वेद ऐसा ऐसे ऑफ दि और कर करते थे करना करने कहा गया है का कात्यायन काम कारण काल में किंतु किया गया किया है किसी की कुछ के रूप में के लिए के साथ केवल को कोई कौटिल्य क्योंकि क्षत्रिय गई गए गया है कि ग्रंथ ग्रंथों चाहिए जाता था जाति जातियों जो तक तथा तरह तो था थी थे दास दासों दिया दो द्वारा धर्मसूत्र नहीं नहीं है नियम पता चलता है पर पुराण पूर्व निर्दिष्ट पृ प्रकार बात बाद बौधायन ब्राह्मण ब्राह्मणों भारत भी मनु मनुस्मृति महाभारत माना मिलता है में भी यज्ञ यदि यह या याज्ञवल्क्य राजा लोग लोगों वर्ण वसिष्ठ वह वही वृहस्पति वे वैदिक वैश्य शब्द शूद्र शूद्र को शूद्रों के सकते समाज से स्पष्ट ही हुए है और हैं हो होगा होता है कि