Meri Aviral Abhivyakti

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Zorba Books, Nov 28, 2022 - Poetry - 160 pages

मेरी अविरल अभिव्यक्ति – एक छोटी-सी कोशिश है मेरे मन-मस्तिष्क में गूँजती आवाज़ों को कलम के माध्यम से कोरे काग़ज़ पर उतारने की, मेरे मन के भगवान के चरणों में कुछ महकती शब्दों की माला अर्पण करने की, अपितु ये भी सच है कि इन शब्दों की प्रेरणा, इन मनोभावों की सरिता, इस कलम की स्याही बनकर वो ही पल-पल बसे रहे, तो ये भी सच है कि मैं एक माध्यम हूँ उनके रहस्यमयी रचना की|

कोशिश बस इतनी है कि इन मकड़ीनुमा कहानियों में, मेरे मन की काली चादर में, दूधिया रौशनी की सुंदरता निहार सकूँ, इन चमचमाती आइनों की भीड़ में अपनी भूमिका को सार्थक कर सकूँ|

कविताएँ हैं जिनमें कभी रोस से भरा मन, तो कभी हर्षोल्लास-से भरी कोयल की मीठे आम के पेड़ों से वो पहली सुरीली आवाज़, कभी विडंबनाओं के उलझे धागों को सुलझाने की नायाब पहल, कभी ज़िंदगी के पर्वत-रूपी श्रृंखला से परास्त बैठा बुझा-बुझा-सा मन और कभी न हार मानने वाला हठ-से भरा मासूम बचपन| इन सभी को स्याही से पिरोने की एक छोटी-सी कोशिश ही तो है|

मेरे इस इंद्रधनुषी संकलन में कुल ३८ कवितायें हैं, जिन्हें पाँच सर्गों में बाँटा गया है | सर्ग एक: दर्शन झरोखा में कुल १२ कवितायें हैं, सर्ग दो: नारी उत्थान में ८, सर्ग तीन: सामाजिक चेतना में ८, सर्ग चार: हास्य व्यंग्य में ३ और सर्ग पाँच: विविध में ७ कवितायें हैं |

कोशिश है की इन कविताओं के माध्यम से कुछ नए आयाम, कुछ खट्टे-मीठे पल, कुछ मन को उद्वेलित करने वाले प्रश्न, कुछ समाज की विसमताओं को सुलझाने की छोटी-सी कोशिश आपके साथ साँझा कर सकूँ |

आशा है मेरी यह छोटी-सी कोशिश आपके विचारों को नए सुनहरे पंख दे|

 

Contents

Section 1
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Section 2
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Section 3
9
Section 4
11
Section 5
13
Section 6
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Section 7
18
Section 8
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Section 21
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Section 22
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Section 26
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Section 11
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Section 12
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Section 13
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Section 14
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Section 17
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Section 18
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Section 19
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Section 28
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Section 29
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Section 30
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Section 31
110
Section 32
119
Section 33
122
Section 34
127
Section 35
130
Section 36
136
Section 37
138
Copyright

Common terms and phrases

अपना अपनी अपने अब अभी अरे आँखों आई आओ आज इन इस उस उसकी एक ऐसा और कब कभी कर करती करने कल कवयित्री कविता कविताओं में कहाँ कहीं का किया किसी की तलाश कुछ के के लिए के साथ कैसा कैसे को कोई क्या क्यों खड़ी गई गया है घर जब जाता जाती है जाते जाने जीवन की जैसे जो तक तब तुम तू तेरी तेरे तो था थे दिन दिल दीदी दे देखो दो धिक्कार है नई नए नये नहीं नारी ने पर पल पे फिर फिर कलम पकड़ते बड़ी बन बस बाहर भी मन माँ माताजी में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने या यूँ ये कैसी रहा है रही थी रहे लग वाले विविध वो जो वो प्यार है व्यक्त शब्द शायद वो प्यार सच सपनों सब समाज सर्ग सुबह से सोच हम हर हाँ हाय ही हुआ हुए हूँ है है मुझे हैं हो

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