Chanakya NitiSubodh Pocket Books |
Contents
Section 1 | 5 |
Section 2 | 11 |
Section 3 | 19 |
Section 4 | 46 |
Section 5 | 55 |
Section 6 | 64 |
Section 7 | 73 |
Section 8 | 83 |
Section 9 | 90 |
Section 10 | 100 |
Section 11 | 109 |
Section 12 | 139 |
Section 13 | 150 |
Common terms and phrases
अत्यन्त अथवा अपनी अपने अपि अपि भी अर्थात् आदि इन इस उत्तम उत्पन्न उसके उसे एक एव ऐसे कर करता है करना चाहिए करने करने वाले कर्म का काम कारण कार्य कि किम् किया किसी की कुल के लिए के समान को कोई कौन क्या क्योंकि गया गुण गुरु घर च और च तथा जल जाती जाते हैं जीवन जैसे जो तु तो त्याग दान दुष्ट दूर देता है धन धर्म न नहीं नष्ट हो नहीं है नहीं होता ने पत्नी पर भी परन्तु पशु पिता पुत्र पुरुष पृथिवी प्रकार प्राप्त बल ब्राह्मण भावार्थ भी भोजन मनुष्य मनुष्य को मनुष्यों मित्र मूर्ख में यदि यस्य यह या ये रहता राजा लोग वह वाला विद्या विद्वान् विना वेद शक्ति शत्रु शब्दार्थ शरीर शीघ्र श्रेष्ठ सदा सब समय संसार सूर्य से स्त्री हि ही हुआ हुए है और है च और हो जाता है होता है होती होते हैं होने पर