GeetgovindAtmaram & Sons |
Contents
Section 1 | 25 |
Section 2 | 42 |
Section 3 | 45 |
Section 4 | 46 |
Section 5 | 93 |
Section 6 | 101 |
Section 7 | 103 |
Section 8 | 170 |
Section 9 | 171 |
Common terms and phrases
अति अधर अपने अब असुर आज इस इसी उठी उर एक और कभी कर करते करो कवि कविता का काव्य किं किया किसी की कुंज कुछ कृष्ण के के लिए केवल केशव को कोई क्या क्यों ग म गया है गीत गीतगोविन्द गीति गीति-काव्य गीयते चल जब जय जगदीश हरे जय जय देव जय देव हरे जा जाता जाती जाते जो तक तव तो था ध्रुवपदम् नहीं नी ने पर परन्तु पुस्तक पृष्ठ प्रबन्धः प्रिये भाव भाषा भी म ग म म मदन मधु मधुर मन मम मलय माधव मान मूल में मेरी मेरे मैं यदि यह रति रस रह रही है रहे राधा री रूप रूपान्तर रे ले वनमाली वह विरह विलस श्री संगीत संस्कृत सखि सखी सब सम सरस सा सां साहित्य सुन्दर से हरि हरि हरि० हिन्दी हिन्दी भाषा ही हृदय हे है कि हैं हो होकर होता है