Hadappa Sabhyata Aur Vaidik Sahitya

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Radhakrishna Prakashan, Jan 1, 2011 - India - 526 pages
हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य (1987) के प्रकाशन से पहले तक इतिहासकार और पुरातत्वविद अपने-अपने क्षेत्रों में अर्ध-दिग्भ्रमित से प्राचीनतम इतिहास को समझने का प्रयत्न कर रहे थे और अपने साक्ष्यों से टकराते हुए खुद पछाड़ खाकर गिर जाते थे। अन्तर्विरोधी दावों का ऐसा दबाव था कि उनके पक्ष में प्रमाण भी नहीं मिल रहे थे और फिर भी उनका निषेध नहीं हो पा रहा था। सच तो यह है कि न तो इतिहास को अपना पुरातत्व मिल रहा था, न पुरातत्व को अपना इतिहास। हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य के प्रकाशन ने इन दोनों अनुशासनों और इनके प्रमाण-पुरुषों के आत्मनिर्वासन को पहली बार पूरे अधिकार और विपुल प्रमाणों के साथ खंडित किया और उसके बाद भारतीय पुरातत्व में पुरातात्विक सामग्री को साहित्य से जोड़कर भी देखने का आरम्भ हुआ। इस अर्थ में इसे एक युगांतरकारी कृति के रूप में स्वीकार किया गया। इस बीच शब्दमीमांसा को आधार बनाकर भी लेखक ने ऋग्वैदिक भाषा का अध्ययन किया और साहित्यिक संदर्भ से हटकर उनके शब्दों के मूलार्थ को ग्रहण करते हुए तकनीकी शब्दावली के आधार पर अपनी स्थापनाओं की जाँच करते हुए लेखक इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इनसे उसकी स्थापनाओं की पुष्टि ही नहीं होती, अपितु हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य में प्रकाशित उसकी स्थापनाएँ आइसबर्ग के दृश्य भाग को ही प्रकट कर पाई हैं। हड़प्पा सभ्यता के लगभग सभी प्रमुख पार्थिव लक्षणों की पुष्टि तो ऋग्वेद से होती ही है, यह ऐसे अनेक उदात्त और जीवंत सांस्कृतिक पक्षों का भी उद्घाटन करता है जिनकी आशा पार्थिव अवशेषों से की ही नहीं जा सकती। उसके इस अध्ययन का सार ज्ीम टमकपब भ्ंतंचचंदे (1995) के रूप में प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक के वर्तमान संस्करण में इस पक्ष का समावेश भी किया गया है जिससे इसकी सार्थकता इसके ही पूर्व संस्करणों से अधिक बढ़ जाती है। इस संस्करण को आदि से अन्त तक सम्पादित करते हुए कुछ और भी परिवर्द्धन-संशोधन किए गए हैं। हड़प्पा सभ्यता का वैभव और वैदिक साहित्य की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को समझने की दृष्टि से यह पुस्तक अनन्य है।
 

Contents

Section 1
1
Section 2
32
Section 3
55
Section 4
65
Section 5
86
Section 6
116
Section 7
158
Section 8
173
Section 17
364
Section 18
390
Section 19
404
Section 20
426
Section 21
454
Section 22
479
Section 23
497
Section 24
517

Section 9
192
Section 10
207
Section 11
208
Section 12
221
Section 13
254
Section 14
283
Section 15
319
Section 16
346
Section 25
529
Section 26
563
Section 27
1
Section 28
41
Section 29
42
Section 30
43
Section 31
Copyright

Common terms and phrases

अतः अधिक अनेक अन्य अपनी अपने अर्थ आगे आदि आधार आये आरंभ आर्य इंद्र इन इनके इस तरह इस बात इसका इसकी इसके इससे इसी इसे ईरान उन उनके उल्लेख उस ऋग्वेद एक कर करते हैं करना करने कहा का काल में किया किसी की की ओर कुछ कृषि के कारण के बाद के रूप में के लिए के साथ केवल को कोई क्षेत्र में क्षेत्रों गया है गयी गये जब जहाँ जा सकता है जाता है जाती जाते जाने जो तक तो था और थी थे दिखायी दिया दृष्टि दोनों द्वारा ध्यान नहीं नहीं है ने पर पहले प्रकार बलूचिस्तान बहुत भारत भारतीय भाषा माना में भी यदि यह यहाँ या ये रहा है रही रहे वह वाले विकास वे वैदिक वैदिक काल शब्द संबंध सकती सभी समय समाज से सोम स्थिति हड़प्पा हम ही हुआ हुई हुए है और है कि हैं होगा होता है होती होने

About the author (2011)

जन्म : 1931 में गोरखपुर जनपद के गगहा गाँव में। साहित्य की विविध विधाओं में लेखन। उनका शोधपरक लेखन इतिहास और भाषा के क्षेत्र में रहा है।

प्रकाशित कृतियाँ : काले उजले टीले (1964); महाभिषग (1973); अपने अपने राम (1992); परम गति (1999); उन्माद (2000); शुभ्रा  (2000); अपने समानान्तर (1970); इन्द्र धनुष के रंग (1996)।

शोधपरक रचनाएँ : स्थान नामों का भाषावैज्ञानिक अध्ययन (अंशत: प्रकाशित, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, 1973); आर्य-द्रविड़ भाषाओं की मूलभूत एकता (1973); हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य, दो खंडों में (1987); दि वेदिक हड़प्पन्स (1995); भारत तब से अब तक (1996); भारतीय सभ्यता की निर्मिति (2004); भारतीय परंपरा की खोज (2011); प्राचीन भारत के इतिहासकार (2011); कोसंबी : मिथक और यथार्थ (2011)।

सम्प्रति : 'ऋग्वेद की परम्परा’ पर धारावाहिक लेखन, 'नया ज्ञानोदय’ में।

संपर्क : ए-6 सिटी अपार्टमेंट, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली-110034

 

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